नाग पंचमी विशेष :
नरवर और नागवंश का इतिहास
•••
नाग पंचमी और नागवंश का इतिहास नागवंश प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण वंश रहा है, कई जगह पुरातत्वविदों को इस वंश के सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर बृहस्पति नाग,देवनाग और गणपति नाग के नाम लिखे हैं, और उनके आधार पर इनका शासन 300 ईशवी तक माना गया है ।
यदि पौराणिक साहित्य पर नजर डालें तो उसमें कई जगह नागवंशियों का उल्लेख मिलता है,इनका शासन भारत मे उत्तर से दक्षिण तक व श्रीलंका तक कई जगह था, हालांकि इनकी पूर्ण रूप से वंशावली या राजधानी का जिक्र नहीं मिल पाता, मध्यप्रदेश के ग्वालियर के नजदीक पंवाय में प्राप्त अभिलेख के आधार पर कई लोग उसी क्षेत्र को नागवंशियों का महत्वपूर्ण क्षेत्र या राजधानी मानते हैं तो कई लोग शिवपुरी जिले के नरवर को इनकी राजधानी बताते हैं, माना जाता है मथुरा से लेकर उज्जैन तक इनका अंतिम समय तक शासन था, और इसका महाभारत में भी जिक्र आता है कि यह ब्रज में भी निवास करते थे और इनके ही मुखिया कालिया नाग को कृष्ण भगवान ने हराकर ब्रज से भागने पर मजबूर कर दिया था, इतिहास में जिक्र मिलता है कि गुप्तवंशी शासकों ने नागों को पराजित किया था कई इतिहासकार इन्हीं नागवंशियों को शक मानते हैं। प्रयाग के स्तम्भलेख में यह उल्लेखित है कि समुद्रगुप्त ने गणपति नाग को पराजित किया था ,गणपति नाग के कई सिक्के पुरात्वविदों को प्राप्त हुए हैं।
महाभारत में एक जगह और जिक्र आता है कि पांडवों ने मगध राज्य नागों से जीता था और जब उन्होंने खांडव वन को जलाया था तो कई नाग उसमें जल गए थे, इन्हीं के वंशज जनमेजय के समय भी नाग विवाद देखने को मिलता है जब नागों को नष्ट करने के लिए यज्ञ किया गया था।
सिकन्दर के समय के साहित्य में भी नागवंश का उल्लेख है जो तक्षशिला में शासन करते थे और उनके यहां भारी और बड़े बड़े सांप सिकन्दर ने देखे थे।
पुराणों के अनुसार कश्मीर में कश्यप ऋषि की पत्नि कद्रू के पुत्र से ही नागवंश की शुरुआत हुई और पहले राजा के रूप में शेषनाग या अंनत को जाना जाता है कश्मीर का अंनतनाग इलाका इनका प्रमुख गढ़ था, आज भी इनके वंश के कुछ लोग यहां हैं, इनके अन्य नागों में वासुकी, तक्षक,कर्कोटक,पद्म, महापद्म, शंख, कुलिक थे, हालांकि किसी किसी जगह इनके सिर्फ 5 कुल बताए हैं जो अनंत, वासुकी,तक्षक, कर्कोटक, पिंगला। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नागकुलों का जिक्र है जिनमें उपरोक्त पांच महत्वपूर्ण माने गए हैं। नागों के पृथक नागकुल का जिक्र भी मिलता है, जैन साहित्य भी इसकी पुष्टि करता है।
(नरवर से प्राप्त नागवंशीय सिक्के)
इसमें जिस कर्कोटक वंश का जिक्र किया गया है वही कर्कोटक नाग राजा नल को वन में अग्नि से पीड़ित अवस्था मे मिला था जिसे राजा नल ने अग्नि से बचाया और उसने नल को अयोध्या का रास्ता बताकर राजा ऋतुपर्ण के यहाँ जाने की सलाह दी।
हम बचपन से नागदेवता को पूजते हैं और उनसे डरते भी हैं, इच्छाधारी नाग की कहनीं भी बचपन से सुनी और सीरियल में देखी हैं।
यदि नाग सिर्फ मनुष्य के रुप में थे तो उनके यहाँ नाग पालने और पूजा करने का जिक्र कैसे आया, कहीं ऐसा तो नहीं दोनों प्रकार के नाग अलग अलग हों जो कालांतर में इतिहासकारों की समझ मे न आने पर मिला दिए गए हैं, आज भी कई जगह नाग के चिन्ह को देखा जाता है, आज भी कई जगह नाग बदले के रूप में किसी को मारते हुए दिखाई देते हैं, शैव सम्प्रदाय में हमेशा से ही नाग पूजित रहे हैं।
नागपंचमी को मनाने के भी कई कारण मिलते हैं, बताया जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी द्वारा इसी सावन की पंचमी को आस्तिक मुनि द्वारा नागों को बचाने का वरदान दिया था और इसी दिन आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय के यज्ञ को समाप्त करवाकर नागों के प्राण बचाए थे, इसलिए सांपों को पंचमी तिथि अति प्रिय है। कहीं कहीं इसे कृष्णजी की कालिया नाग पर विजय के रूप में मनाने का जिक्र मिलता है।
कारण जो भी हों पर नागों को लेकर जिस प्रकार की मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं उसे देखकर लगता है अभी बहुत कुछ जानने की जरूरत है ,ज्योतिष में भी जिस कालसर्प योग का वर्णन है क्या वह भी इसी से जुड़ा है, ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजे जा रहे हैं, उम्मीद है समय के साथ साथ कई जवाब मिलेंगे।
आलेख :
मनीष भार्गव
लेखक और शिक्षाविद
---