राजा नल उवाच : नैषिधीयचरितम् |
अये ! ममोदासितमेव जिह्वया
द्वयेऽपि तस्मिन्ननतिप्रयोजने।
गरौ गिरः पल्लवनार्थलाघवे
मितं च सारं च वचो हि वाग्मिता ॥
- नैषिधीयचरितम्
(श्रीहर्ष विरचित संस्कृत महाकाव्य)
(यहाँ राजा नल दमयन्ती से कह रहे हैं कि हे दमयन्ती! जिसका कोई प्रयोजन नहीं था, उन दोनों में ही मेरी जिह्वा उदासीन रही (कम बोल पाया)। (इसका कारण यह है कि) वाणी का विस्तार एवं अर्थलाघव दोनों ही विषतुल्य होते हैं (क्योंकि) संयमित (माप-तौलकर बोलना) एवं सारयुक्त वाणी ही वाग्मिता है।)
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