बुधवार, 14 जुलाई 2021

बरसात के मौसम की ऐसी कहावतें जिनके आगे मौसम विज्ञान भी फैल | लोक कवि घाघ और भड्डरी की कहावतें | नरवर दर्शन

घाघ और भड्डरी का जीवन वृत - मौसम से जुड़ी अचूक कहावतें

आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करती आयी हैं। बिहार व उत्‍तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्‍य साबित होती हैं -


घाघ और भड्डरी की कहावतें - नरवर दर्शन : इसितहास, विरासत, पर्यटन, प्रकृति, शिक्षा, साहित्य, कला और संस्कृति का संवाहक


सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

अर्थ : यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।


शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

अर्थ : यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।


भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

अर्थ : यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।


अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

अर्थ : यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

अर्थ : यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।


सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।

अर्थ : यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।


पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।

अर्थ : यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।

पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।

अर्थ : यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।



अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

अर्थ : यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।


अब इन कहावतों को कहने वाले बुजुर्गजन भी विरले ही बचे हैं। और इन्हें सुनने-समझने वाले भी ना के बराबर। लेकिन हमारे नक्षत्र, ग्रह और तिथियाँ शाश्वत हैं। इन्हीं को आधार मानकर गढी गयी ये कहावतें भी नक्षत्रों के रहने तक शाश्वत रहेंगी। ऐसे में हमारा प्रयास है कि यह परंपरा डिजीटल रूप में सहेजी जाए, ताकि हमारी आने वाली पीढी, अपने पूर्वजों की इस रोचक विधा से परिचित हो गौरवान्वित हो सके।











स्रोत : विकीकोट
प्रस्तुति : नरवर दर्शन






2 टिप्‍पणियां:

  1. सनातन संस्कृति और ज्ञान…. ये इन सब की धरोहर है और कितनी मूल्यवान है, अन्दाज़ लगा सकते हैं, वर्षों के अध्ययन के बाद का निष्कर्ष है और हम पश्चिम की ओर भाग रहे हैं,

    बहुत बहुत अभिनंदन इस अमूल्य जानकारी के लिए…

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    1. ऐसी सम्बलपूर्ण प्रतिक्रियाएं हमारा हौसला हैं। आपका साथ बना रहें

      जय जय
      ����

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