ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर की अनीति और धोखे से भरी 30 वर्षों के लगातार कोशिशों के बावजूद वह महाराणा प्रताप को बंदी बनाने की नापाक हसरत पूरी नहीं कर सका।
कहते हैं कि महाराणा प्रताप के निधन के बारे में जानकर अकबर की आंखें भी छलक गई थी। मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, ‘इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे, लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे। प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया, लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।'
हल्दीघाटी के गाइड सैलानियों को यह भी सुनाते हैं कि एक बार अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी मां से पूछा… मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं. उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दीघाटी की मिट्टी लेकर आना जिसे हजारों वीरों ने अपने रक्त से सींचा है।
आज मेवाड़पति महाराणा प्रताप सिंह जी सिसौदिया की पुण्यतिथि पर वीर योद्धा को सादर नमन
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लेख : Nayiwalistory
चित्र : ReSanskrit
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